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श्राद्ध और पितृपक्ष 2025: महत्व, विधि, पिंडदान, तर्पण मंत्र और शंकाओं का समाधान | Spiritual Podcast in Hindi | By Prashant Mukund Das

Updated: Sep 17

यह पॉडकास्ट आपके जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करेगा और पितरों की कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाएगा। ⏰ Video Covers (हिन्दी में) श्राद्ध क्या है? पिंडदान और श्राद्ध में अंतर गया में एक बार करने के बाद क्या हर वर्ष श्राद्ध की आवश्यकता है? पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए केवल पुत्री होने पर श्राद्ध कैसे करें? क्या सभी पुत्रों को श्राद्ध करना चाहिए? श्राद्ध की विधि तर्पण मंत्र श्राद्ध के लिए कितने ब्राह्मण चाहिए? जो अन्य धर्म श्राद्ध नहीं करते, उनके लिए पितृ दोष का क्या? भूत की कथा (हनुमान प्रसाद पोदार जी) भंडारा बनाम श्राद्ध क्या एकादशी पर पिंडदान और श्राद्ध कर सकते हैं?


🌿 पितृ पक्ष 2025 विशेष पॉडकास्ट 🌿


इस पॉडकास्ट में Prashant Mukund Prabhu जी पितृ पक्ष के गूढ़ रहस्यों और महत्व को सरल भाषा में समझाते हैं। पितृ पक्ष का समय हमारे पूर्वजों को याद करने, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके कल्याण के लिए श्राद्ध एवं तर्पण करने का शुभ अवसर होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि श्राद्ध करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि परिवार में समृद्धि, शांति और आशीर्वाद भी प्राप्त होते हैं।


इस वीडियो में आप जानेंगे –

✨ पितृ पक्ष के पीछे छिपे रहस्य

✨ श्राद्ध की विधि और महत्व

✨ पूर्वजों की कृपा से जीवन में आने वाले बदलाव

✨ कौन-सा दिन किस पितृ के लिए शुभ माना जाता है


यह पॉडकास्ट आपके जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करेगा और पितरों की कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाएगा।


⏰ वीडियो टाइमिंग्स (हिन्दी में)


00:00 - 01:54 परिचय

01:54 - 03:42 श्राद्ध क्या है?

03:43 - 09:48 पिंडदान और श्राद्ध में अंतर

09:50 - 15:13 गया में एक बार करने के बाद क्या हर वर्ष श्राद्ध की आवश्यकता है?

15:14 - 18:51 पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए

18:52 - 21:42 केवल पुत्री होने पर श्राद्ध कैसे करें?

21:43 - 22:49 क्या सभी पुत्रों को श्राद्ध करना चाहिए?

22:50 - 28:48 श्राद्ध की विधि

28:49 - 36:10 तर्पण मंत्र

36:25 - 42:14 श्राद्ध के लिए कितने ब्राह्मण चाहिए?

42:15 - 44:13 जो अन्य धर्म श्राद्ध नहीं करते, उनके लिए पितृ दोष का क्या?

44:14 - 49:11 भूत की कथा (हनुमान प्रसाद पोदार जी)

49:12 - 49:51 भंडारा बनाम श्राद्ध

50:14 - 51:21 क्या एकादशी पर पिंडदान और श्राद्ध कर सकते हैं?


Mantra for Refernce

ŚB 7.10.22

कुरु त्वं प्रेतकृत्यानि पितु: पूतस्य सर्वश: ।

मदङ्गस्पर्शनेनाङ्ग लोकान्यास्यति सुप्रजा: ॥ २२ ॥

kuru tvaṁ preta-kṛtyāni

pituḥ pūtasya sarvaśaḥ

mad-aṅga-sparśanenāṅga

lokān yāsyati suprajāḥ


पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। तर्पण कैसे करना चाहिए, तर्पण के समय कौन से मंत्र पढ़ने चाहिए और कितनी बार पितरों से नाम से जल देना चाहिए आइए अब इसे जानेंः- हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करेंः- ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए।


*मंत्र क्या बोले तर्पण के समय*।

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः ।

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ॥1


तर्पण पिता को जल देने का मंत्र

अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः


इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके बाद पितामह को जल जल दें।


तर्पण पितामह को जल देने का मंत्र

अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा *वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः*। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।


तर्पण माता को जल देने का मंत्र

जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए। माता को जल देने का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है। इन्हें जल देने का नियम भी अलग है। चूंकि माता का ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है। माता को जल देने का मंत्रः- (गोत्र का नाम लें) गोत्रे *अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः*।


दादी के नाम पर तर्पण

(गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी *वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः*।


श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं।

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